दे रही माँ रण निमन्त्रण॥
शत्रु करता आज गर्जन
दैत्य सा उन्मत्त नर्तन
संगठन का वज्र लेकर
हम करें रिपु मान मर्दन॥१॥
सुप्त सैनिक आज जागें
और रण के साज साजें
दानवों से मुक्त कर दें
मातृ-भू का आज कण-कण॥२॥
आज का रण न्याय का है
सामना अन्याय काहै
पाशवी जन से करें हम
आज हिंदू राष्ट्र रक्षण॥३॥
आज दिन है साधना का
शक्ति की आराधना का
संगठित हो राष्ट्र के हित
हम करें सर्वस्व अर्पण॥४॥
दे रही है माँ रण निमंत्रण॥
de rahī mā raṇa nimantraṇa ||
śatru karatā āja garjana
daitya sā unmatta nartana
saṁgaṭhana kā vajra lekara
hama kareṁ ripu māna mardana ||1||
supta sainika āja jāgeṁ
aura raṇa ke sāja sājeṁ
dānavoṁ se mukta kara deṁ
mātṛ-bhū kā āja kaṇa-kaṇa ||2||
āja kā raṇa nyāya kā hai
sāmanā anyāya kāhai
pāśavī jana se kareṁ hama
āja hiṁdū rāṣṭra rakṣaṇa ||3||
āja dina hai sādhanā kā
śakti kī ārādhanā kā
saṁgaṭhita ho rāṣṭra ke hita
hama kareṁ sarvasva arpaṇa ||4||
de rahī hai mā raṇa nimaṁtraṇa ||
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