राष्ट्र अन्धकार के विनाश के लिए
चिर अतीत के धवल प्रकाश के लिए
बुद्धि के विवेक के विकास के लिए
वृद्धि के समृद्धि के प्रयास के लिए
त्याग की लिए मशाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
राष्ट्र की अखंड साधना अमर बने
प्राण प्राण की समर्चना अजर बने
राष्ट्र की नवीन कल्पना संवारने
योजनानुसार पुण्य सर्जना घने
ले विमुक्ति गर्व भाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
कोटि कोटि कंठ की पुकार एक हो
कोटि कोटि बुद्धि का विचार एक हो
कोटि कोटि प्राण का श्रृंगार एक हो
एक ध्येय और जीत हार एक हो
राष्ट्र को बना निहाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
एक बार दुग्ध से धरा नहा उठे
एक बार फिर बहार लाह लहा उठे
कीर्ति गंध से स्वदेश माह महा उठे
राष्ट्र का विजय निशाँ गह गहा उठे
जग मागा विशाल भाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
Sootra Sangathan Sambhaal Jyoti Ye Jale Koti Koti Deep Baal Jyoti Ye Jale
Raashtra Andhakaar Ke Vinaash Ke Liye
Chir Ateet Ke Dhaval Prakaash Ke Liye
Buddhi Ke Vivek Ke Vikaas Ke Liye
Vruddhi Ke Samruddhi Ke Prayaas Ke Liye
Tyaag Kee Liye Mashaal Jyoti Ye Jale … Koti Koti Deep
Raashtra Kee Akhand Saadhanaa Amar Bane
Praan Praan Kee Samarchanaa Ajar Bane
Raashtra Kee Naveen Kalpanaa Samvaarane
Yojanaanusaar Punya Sarjanaa Ghane
Le Vimukti Garv Bhaal Jyoti Ye Jale … Koti Koti Deep
Koti Koti Kanth Kee Pukaar Ek Ho
Koti Koti Buddhi Kaa Vichaar Ek Ho
Koti Koti Praan Kaa Shringaar Ek Ho
Ek Dhyeya Aur Jeet Haar Ek Ho
Raashtra Ko Banaa Nihaal Jyoti Ye Jale … Koti Koti Deep
Ek Baar Dugdh Se Dharaa Nahaa Uthe
Ek Baar Phir Bahaar Lah Lahaa Uthe
Keerti Gandh Se Swadesh Mah Mahaa Uthe
Raashtra Kaa Vijay Nishaan Gah Gahaa Uthe
Jag Magaa Vishaal Bhaal Jyoti Ye Jale … Koti Koti Deep
सूत्र संगठन संभाल ज्योटिया ये जले कोटि कोटि दीप बाल ज्योति ये जले
राष्ट्र अन्धकार के विनाश के लिए
चिर अतीत के धवल प्रकाश के लिए
बुद्धि के विवेक के विकास के लिए
वृद्धि के समृद्धि के प्रयास के लिए
त्याग की लिए मशाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
राष्ट्र की अखंड साधना अमर बने
प्राण प्राण की समर्चना अजर बने
राष्ट्र की नवीन कल्पना संवारने
योजनानुसार पुण्य सर्जना घने
ले विमुक्ति गर्व भाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
कोटि कोटि कंठ की पुकार एक हो
कोटि कोटि बुद्धि का विचार एक हो
कोटि कोटि प्राण का श्रृंगार एक हो
एक ध्येय और जीत हार एक हो
राष्ट्र को बना निहाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
एक बार दुग्ध से धरा नहा उठे
एक बार फिर बहार लाह लहा उठे
कीर्ति गंध से स्वदेश माह महा उठे
राष्ट्र का विजय निशाँ गह गहा उठे
जग मागा विशाल भाल ज्योति ये जले … कोटि कोटि दीप
nitish bobde | Feb 9 2010 - 11:57
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